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आरक्षण

काव्य संख्या-209 =========== आरक्षण =========== चलो, उसने कुछ तो दिया, नौकरी न सही, आरक्षण तो दिया, झूठा ही सही, सबका साथ सबका विकास तो किया, सबके हाथ में लॉलीपॉप तो दिया, एससी-एसटी-ओबीसी को ही नहीं, मुस्लिम-सिख-ईसाई को ही नहीं, सवर्णों को भी तो ठगा, बजाओ, खूब बजाओ, आरक्षण का झुनझुना, जो पिछले सत्तर साल में नहीं हुआ, उसने बहत्तर घंटे में कर दिया, हां, सवर्णों को भी मुर्ख बना दिया, आरक्षण का टुकड़ा फेंक दिया, सवर्णों, अब कुछ मत कहना, उसने विकास कर दिया, तुम्हारे स्वाभिमान को आरक्षण से खरीद लिया, चलो, उसने कुछ तो दिया, नौकरी न सही, आरक्षण तो दिया,   प्रियदर्शन कुमार

पुनर्नवजागरण

पुनर्नवजागरण ===========             मेरे द्वारा दिए गए पुनर्नवजागरण शीर्षक पर पाठकों को आपत्ति हो सकती है कि ये क्या नया शब्द गढ़ लिया है, वो भी 21वीं सदी में, जबकि यह काल ज्ञान-विज्ञान के उत्कर्ष का काल है। मानव सभ्यता के उत्कर्ष का काल है तो इसका कारण यह है कि जिस आस्था को तर्क से, ईश्वर केन्द्रित चिंतन को मानव केन्द्रित चिंतन से तथा भावुकता को बौद्धिकता से प्रतिसंतुलित करते हुए भारतीय नवजागरण आंदोलन की शुरुआत हुई थी तथा मध्यकाल और आधुनिक काल के बीच एक लकीर खींची गई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लकीर धीरे-धीरे गहराने की बजाय और भी मिटती जा रही है।हो सकता है कि आप मेरी बात से इत्तेफाक न रखें लेकिन यह सच है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ कि एक बार फिर हमलोग मध्यकाल की ओर जा रहे हैं। एक बार फिर हमलोग आस्था, भावुकता और ईश्वर केंद्रित चिंतन के मकड़जाल में उलझते जा रहे हैं तथा तर्क, बौद्धिकता और चिंतन ताक पर रख दिया गया है। धर्म के नाम पर लोगों की हत्या, जातिवाद, मंदिर-मस्जिद को लेकर झगड़ा, भगवान् की जाति व धर्म को लेकर लोगों के बीच झगड़ा,गाय को लेकर लोगों की हत्या, माॅब लिंचिग, पुष्पक विमान