आरक्षण

काव्य संख्या-209
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आरक्षण
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चलो,
उसने कुछ तो दिया,
नौकरी न सही,
आरक्षण तो दिया,
झूठा ही सही,
सबका साथ सबका विकास तो किया,
सबके हाथ में लॉलीपॉप तो दिया,
एससी-एसटी-ओबीसी को ही नहीं,
मुस्लिम-सिख-ईसाई को ही नहीं,
सवर्णों को भी तो ठगा,
बजाओ,
खूब बजाओ,
आरक्षण का झुनझुना,
जो पिछले सत्तर साल में नहीं हुआ,
उसने बहत्तर घंटे में कर दिया,
हां, सवर्णों को भी मुर्ख बना दिया,
आरक्षण का टुकड़ा फेंक दिया,
सवर्णों, अब कुछ मत कहना,
उसने विकास कर दिया,
तुम्हारे स्वाभिमान को
आरक्षण से खरीद लिया,
चलो,
उसने कुछ तो दिया,
नौकरी न सही,
आरक्षण तो दिया,
  प्रियदर्शन कुमार

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