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ऐलै-ऐलै हो चुनाव क दिनमा

काव्य संख्या-212 ================= ऐलै-ऐलै हौ चुनाव क दिनमा ================= ऐलै-ऐलै हौ चुनाव क दिनमा, सैज गेले बैनर-पोस्टर स, सबै गांव-शहरवा, गली-मोहल्ला खेत-खलिहान, घूम रहल छथिन नेताजी, बनाय रहल छथिन, सबै स सुख-दुख क साथी, बहिन-भाय चाचा-चाची मौसी क जोड़ रहलखिन हन लोगन स रिश्ता, देखियो एक-एक वोट के खातिर, की-की कैर रहल छथिन नेताजी, घूम रहल छथिन नेताजी, मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारा, खोज रहल छथिन नेताजी, अप्पन जात-बिरादरी औरों धरम के लोगन क, बड़-बड़ बात बोलै छथिन नेताजी, आम भल-मानुस जनता क, दिखाय रहल छथिन, लोगन क बड़-बड़ सपना, बांट रहलखिन हन, दारु क बोतल औरो चखना, कैर रहलखिन हन जोर-शोर से प्रचार, हे दादी हे काकी हे चाची, बटन दबायब हम्मर चुनाव चिह्न पर, हमही छि अहां क अप्पन, हमही करब सब काम अपनै क, ऐलै-ऐलै हौ चुनाव क दिनमा।                 प्रियदर्शन कुमार