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जरूरत

काव्य संख्या-222 ============ जरूरत ============ चिंता नहीं, चिंतन की जरूरत है, जंग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए, एक रणनीति की जरूरत है। तानाशाह से मुक्ति पाने के लिए, एकता की जरूरत है न जाति की न धर्म की, यह लोकतंत्र है, यहां जरूरत है संख्या बल की। न पक्ष साथ है न विपक्ष साथ है, यहां हर कोई एक नेता है, लड़ने की हमें खुद ही जरूरत है। जीत हो कि हार हो, इसकी फिकर छोड़ हमें, उस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।                             प्रियदर्शन कुमार

लोग

नगर-नगर हर डगर चले लोग, अपनी परछाइयों से पीछा छुड़ाने को लोग, खो गये भीड़ में कहीं, अब अपने आप को ढूंढ़ते हैं लोग। प्रियदर्शन कुमार

अधिकार

अधिकार खो कर जीने से बेहतर है, अधिकार के लिए लड़ते हुए मर जाना।                               प्रियदर्शन कुमार

जनता

तुम्हारे हर काम का मैं क्यों सराहना करूं, ग़लत को ग़लत नहीं, तो और क्या कहूं। तुम्हें चुना है हमने, फिर अपने सवाल किससे करूं।

सोच रहे हैं साहब

काव्य संख्या - 221 ==================== सोच रहे हैं साहब ==================== हुगली नदी  में सोच रहे हैं  साहब अब कौन-सी गुगली  फेंकी  जाए? बचा-खुचा जो हिस्सा है भारत का उसमें भी क्यों न आग लगायी जाए? अब भी मुस्लिम परस्त लोग हैं बाकि उन्हें भी आग में क्यों न जलायी जाए? साम्प्रदायिकता की कोख से जनमा हूं शांति नहीं पसंद अशांति का पुजारी हूं? क्यों ऐसे ही चैन से जीने दे जनता को जाति-धर्म का ज़हर क्यों न घोली दूं? आने वाली नस्लें क्यों याद करे हिटलर को कुछ ऐसा कर जाऊं ताकि याद करे मुझको? हिटलर ने गैस चैम्बर में जलाया था यहुदियों को मैं भी क्यों न मुस्लिमों के साथ ऐसा कुछ कर जाऊं? इतिहास बनाने आया हूं इतिहास बनाकर जाउंगा जिन्ना सावरकर की श्रेणी में मैं भी शामिल हो जाऊंगा? हुगली नदी  में  सोच रहे हैं साहब अब कौन-सी गुगली  फेंकी  जाए?                       प्रियदर्शन कुमार

कुछ तो बात है भारत की मिट्टी

कुछ तो बात है भारत की मिट्टी में, चोट किसी को लगती है, दर्द किसी और को होता है। बहुत कोशिशें की, उन्होंने इसे तोड़ने की, अब खुद ही टूटकर बिखर रहे हैं।                     प्रियदर्शन कुमार

कब तक रोक पाओगे तुम

बगावत को कब तक रोक पाओगे तुम, चिंगारियों को आग में बदलने से, कब तक रोक पाओगे तुम, अपने-आपको जलने से, कब तक रोक पाओगे तुम, इतनी-सी बातें समझ में नहीं आती तुम्हें, मेरे मकान के बगल में तुम्हारा भी मकान है, जब मेरे मकान जलेंगे , अपने मकान को जलने से, कब तक रोक पाओगे तुम।             प्रियदर्शन कुमार