ऐ सियासत तुम्हारे खेल निराले हैं
काव्य संख्या-175 --------------------------------------- ऐ सियासत तुम्हारे खेल निराले हैं (28/04/2018) --------------------------------------- ऐ सियासत तुम्हारे खेल निराले हैं / जिसने तुमपे उंगलियां उठाई उसे मंत्री बना दिया / जिसने आँख खोली उसे सदा के लिए सुला दिया / जिसने तुम्हारे चौखटे पर मत्था टेके उसे लालकिला दे दिया / जिसने बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया, सजा देने की बजाय हिन्दू-मुस्लिम में उलझन उलझा दिया / ऐ सियासत तुम्हारे खेल निराले हैं / जिसने जो भी माँगा उसे कुछ-न-कुछ जरूर दे दिया / किसी को गाय का ठेका दे दिया / किसी को श्रीराम की रक्षा करने का ठेका दे दिया / किसी को घर वापसी करने का ठेका दे दिया / लेकिन किसी को निराश नहीं किया / खाली हाथ नहीं लौटने दिया / जिसकी आवाज तुम तक नहीं पहुंच पायी / उसे मन की बात दे दिया / ऐ सियासत तुम्हारे खेल निराले हैं / जिसने जो भी माँगा दे दिया / माल्या ने लंदन मांगा तो लंदन दे दिया / नीरव-चौकसी ने विदेश में रहने की ईच्छा जाहिर की / तो उसे तथास्तु का आशिर्वाद दे दिया / जब सब की ईच्छाएं पूरी हो गई तो / काशी में मंदिर तुड़व