शहादत

बहुत उमड़ रहा प्रेम लोगों में जवानों की शहादत पर
कहां थे वे जब बरस रही थी लाठियां इन जवानों पर।

ये  कैसा छद्म  देशभक्ति  है कोई  जाकर पुछे उनसे
बहा रहे हैं घड़ियाली आंसू निकाल रहे कैंडिल मार्च।

क्या तुम भूल गए उड़ी और पठानकोट के हमले को
क्या किए तुम जवाब दो जवानों की विधवाओं को ।

छा गया है मातम पसर गया है सन्नाटा मिट गई है सिंदूर
तुम्हें इससे फर्क क्या पड़ता है जाओगे तुम इसे भी भूल।

अगर करना ही चाहते हो इनके लिए तुम कुछ भी
क्या पक्ष क्या विपक्ष निकालो इन सब गद्दारों को।

चुनाव जीतने के लिए न जाने ये कितने कुकर्म करेंगे
इन कुकर्मों की सजा न जाने कबतक सैनिक भुगतेंगे

सारी  समस्याओं  का  जड़  यही   पर   निहित  है
यही से निकलेगा सारी समस्याओं का समाधान भी।

आओ सबकुछ छोड़कर, विचार करें इन समस्याओं पर
फिर न कभी सैनिक मरेंगे न होंगी विधवाओं की मांगे सुनी।
                               
नहीं चाहते हैं हम खून-खराबा नहीं चाहते हैं हम बदला
हम चाहते हैं शांति आओ मिलकर विचार करें हम सभी।
प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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