राजनीति
काव्य संख्या-213
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राजनीति
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मैं लौट जाउंगा
फिर अपनी कविता की दुनिया में,
कुछ पल ठहर जाने दो
मुझे राजनीति की दुनिया में,
मैं देख लेना चाहता हूँ
इसकी सीमाओं को,
मैं छान लेना चाहता हूँ
राजनीति के हर कोने को,
मैं जान लेना चाहता हूँ,
कितने तहें हैं राजनीति के,
मैं महसूस कर लेना चाहता हूँ
उसकी घृणित भावनाओं को,
मैं देखता हूँ बहुरूपिया को
जिसने छिपा लिया है
अपने वास्तविक चहरे को,
मैं पढ़ लेना चाहता हूँ
हर उस चेहरे को,
मैं देखता हूँ उन सपनों को
जो बेची जाती है भोली-भाली जनता को,
मैं लौट जाउंगा
फिर अपनी कविता की दुनिया में,
कुछ पल ठहर जाने दो
मुझे राजनीति की दुनिया में।
प्रियदर्शन कुमार
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