हां ! मैं कविता हूं

काव्य संख्या-230
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हां ! मैं कविता हूं
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हां ! मैं कविता हूं 
मैं स्थिर नहीं, 
मैं गतिशील हूं 
समय के साथ बदलता हूं 
परिस्थितियों के अनुरूप ढ़लता हूं
मैं शांति हूं
मैं क्रांति हूं
मैं लवों पर मुस्कान हूं
मैं आंखों में समंदर हूं
मुझे न किसी से बैर है
मेरा न कोई दुश्मन है
मैं सुख-दुख का साथी हूं
हां ! मैं कविता हूं।

मैं आयना हूं
खुद के अंदर झांकने की,
लोगों को सलाह देता हूं
मैं दीपक हूं 
दूसरों को रास्ता दिखाता हूं
मैं अभिभावक हूं
मार्गदर्शन करता हूं
मैं अतीत को भूलता नहीं हूं
मैं वर्तमान में जीता हूं
मैं भविष्य को संवारता हूं
हां ! मैं कविता हूं।

मैं चेतना हूं
मैं संवेदना हूं
मैं विरह में हूं
मैं मिलन में हूं
मैं वेदना में हूं
मैं प्रेम में हूं
मैं 'स्व' में भी हूं
मैं 'पर' में भी हूं
मैं लघुता में भी हूं
मैं विराटता में भी हूं
मैं यति गति लय हूं
हां ! मैं कविता हूं।

मेरे अंदर जीवटता है
मेरे अंदर जीजिविषा है
मेरे अंदर ऊर्जा है
मेरे अंदर उत्साह है
मेरे अंदर करूणा है
मेरे अंदर स्नेह है
हां ! मैं कविता हूं

मैं गरीबों की कुटिया में भी हूं
मैं राजा के महलों में भी हूं
मैं हर जगह मौजूद हूं
मैं न किसी से बंधा हूं
मैं न जंजीरों में जकड़ा हूं
मेरी न कोई सीमा है
मैं न किसी के सीमा में हूं
मैं असीमित हूं
मैं असीम हूं
मैं शाश्वत हूं
हां! हां!
मैं कविता हूं।
"प्रियदर्शन कुमार"

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