मैं और मेरी कविता

मैं और मेरी कविता
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लिखने को बहुत कुछ है, 
मगर, लिख नहीं पाता हूं,
बहुत कुछ लिखने की चाह में, 
कुछ नहीं लिख पाता हूं,

कांपते हैं हाथ मेरे, 
लड़खड़ाते हैं शब्द मेरे, 
साथ नहीं देते कलम मेरे, 
साथ नहीं देते हैं शब्द मेरे, 

मौन हैं कलम मेरे, 
मौन हैं शब्द मेरे, 
मौन हूं मैं
विचलित हैं मन मेरे

तोड़ना चाहता हूं मैं, 
लौटना चाहता हूं मैं, 
एक बार फिर कविता दुनिया में, 
जो कहीं मुझसे दूर चली गई है, 
या ये कहूं, 
मैं उससे दूर हो गया हूं, 

जबसे छूटा है साथ तेरा,
तबसे टूटा है मन मेरा,
पन्नों को अक्सर पलटता हूं,
पुरानी कविताओं को पढ़ता हूं,

अकेलेपन को दूर करती है मेरी कविता,
मेरे होने का अहसास दिलाती है मेरी कविता।

प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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