हत्या कहूँ या मृत्यु कहूँ

काव्य संख्या-215
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हत्या कहूँ या मृत्यु कहूँ
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बता इसे मैं क्या कहूँ
हत्या कहूँ या मृत्यु कहूँ
तुम्हारे लिए तो बस ये आकड़े हैं
उसके लिए क्या जिसने अपने बच्चे खोएं हैं
सत्ता मौन है विपक्ष मौन है
सारी-की-सारी व्यवस्था मौन है
मैं पूछता हूँ तुमसे
तू ही बता
इसके लिए उत्तरदायी कौन है
कौन उठाएगा उनके लिए आवाज़
कौन सुनेगा उसकी आवाज़
कहां गयीं तुम्हारी योजनाएं
जिसके बलबूते तुम सत्ता में आए
कौन सुनेगा उन माँ... ओ की चित्कार
जिनके आंचल पड़ गये सुने
सुने पड़ गये जिनके आंगन
जहां बसती थी हमेशा खुशियाँ
आज छा गया उनके घर मातम
अब कौन बनेगा उनके बुढ़ापे की लाठी
चार लाख रूपए नहीं चाहिए
चाहिए उन्हें उनके बुढ़ापे की लाठी
तुम्हारी एक लापरवाही से
कितने ही आंगन हो गई सुनी
सुना था माँ-बाप की अर्थी को
देते हैं बच्चे कांधा
आज देख रहा हूँ
माँ-बाप दे रहे हैं
बच्चे की अर्थी को कांधा
तू बता
किस बात की सजा मिली उन्हें
कहां गया तुम्हारा
शासन-सुशासन-पद्मनासन
कहां गया तुम्हारा
"आयुष्मान भारत"
अब तू ही बता
इसे मैं क्या कहूँ
हत्या कहूँ या मृत्यु कहूँ ?
          प्रियदर्शन कुमार

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