मैं कश्मीर हूँ

काव्य संख्या-216
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मैं कश्मीर हूँ
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मैं कश्मीर हूँ
हां, मैं कश्मीर हूँ
मैं भारत का सिरमौर हूँ
दुनिया का स्वर्ग हूँ
मैं कश्मीर हूँ
हां, मैं कश्मीर हूँ
मुझसे से ही निकलती हैं
हजारों नदियां
बुझाता हूँ मैं करोड़ों लोगों की प्यासें
पर अंदर ही अंदर घूटता रहता हूँ मैं
कोई भी सुनता नहीं है मेरे दर्द को
मैं बेसहारा और बेजान हूँ
मैं कश्मीर हूँ
हां, मैं कश्मीर हूँ
मैं ही करता हूँ
भारत की सीमाओं की रक्षा
न आने देता हूँ दुश्मनों को यहां
पर रोक न पाता हूँ भीतर के दुश्मनों को
मैं भारतीय राजनीति की घिनौनी तस्वीर हूँ
मैं कश्मीर हूँ
हां, कश्मीर हूँ
मैं हिन्दूओं के आस्था का केंद्र हूँ
हिन्दू-मुसलमान के भाईचारे का प्रतीक हूँ
सभी के दिलों की धड़कन हूँ
लेकिन मेरे दिल को टुकड़ों में तोड़ा
जम्मू-कश्मीर-लद्दाख में बांटा
मेरे सीने को गोली-तोपों से छलनी किया
मैं लहूलुहान हूँ
मैं कश्मीर हूँ
मेरे दर्द की कहानी
झेलम से पूछो
जो मौन होकर ढोती हैं
रोज हजारों लाशें
वादियों में पसरे सन्नाटे से पूछो
सुनी पड़ी उन सड़कों से पूछो
उन मा... ओं से पूछो
विधवाओं से पूछो
जिनके आंसुओं को पोछ न पाता हूँ मैं
मैं बेबस-लाचार हूँ
मैं कश्मीर हूँ
हां, मैं कश्मीर हूँ।
प्रियदर्शन कुमार

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