सोच रहे हैं साहब

काव्य संख्या - 221
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सोच रहे हैं साहब
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हुगली नदी  में सोच रहे हैं  साहब
अब कौन-सी गुगली  फेंकी  जाए?

बचा-खुचा जो हिस्सा है भारत का
उसमें भी क्यों न आग लगायी जाए?

अब भी मुस्लिम परस्त लोग हैं बाकि
उन्हें भी आग में क्यों न जलायी जाए?

साम्प्रदायिकता की कोख से जनमा हूं
शांति नहीं पसंद अशांति का पुजारी हूं?

क्यों ऐसे ही चैन से जीने दे जनता को
जाति-धर्म का ज़हर क्यों न घोली दूं?

आने वाली नस्लें क्यों याद करे हिटलर को
कुछ ऐसा कर जाऊं ताकि याद करे मुझको?

हिटलर ने गैस चैम्बर में जलाया था यहुदियों को
मैं भी क्यों न मुस्लिमों के साथ ऐसा कुछ कर जाऊं?

इतिहास बनाने आया हूं इतिहास बनाकर जाउंगा
जिन्ना सावरकर की श्रेणी में मैं भी शामिल हो जाऊंगा?

हुगली नदी  में  सोच रहे हैं साहब
अब कौन-सी गुगली  फेंकी  जाए?
                      प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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