जरूरत

काव्य संख्या-222
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जरूरत
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चिंता नहीं,
चिंतन की जरूरत है,
जंग को अंजाम तक पहुंचाने के लिए,
एक रणनीति की जरूरत है।
तानाशाह से मुक्ति पाने के लिए,
एकता की जरूरत है
न जाति की न धर्म की,
यह लोकतंत्र है,
यहां जरूरत है संख्या बल की।
न पक्ष साथ है न विपक्ष साथ है,
यहां हर कोई एक नेता है,
लड़ने की हमें खुद ही जरूरत है।
जीत हो कि हार हो,
इसकी फिकर छोड़ हमें,
उस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है।
                            प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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