नेता

काव्य संख्या-227
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नेता
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बता, तुम्हारी मौत पर
मैं क्या करूं
ताली बजाऊं, थाली बजाऊं
या फिर दीप जलाऊं
विलाप करूं या फिर
संवेदना के दो शब्द कहूं
मरने वालों की सूची में
न तो तुम प्रथम हो और न आखिरी।
नहीं, ये मुझसे नहीं होगा,
समाज में तुम्हारी हैसियत ही क्या है?
न तो तुम राजनीतिक घराने से हो
न ही पूंजीपतियों के घराने से,
न तो तुमने अपने स्वाभिमान बेचे
और न ही अपनी जमीर का सौदा ही किया
फिर बता, मैं तुम्हारे लिए क्या करूं।
तुम्हारे यहां आऊं भी तो कैसे
तुम्हारा घर बदबूदार इलाक़े में जो है
मैं आ भी जाता
नाक पर रूमाल रखकर
लेकिन अभी चुनाव नहीं है
अभी काम भी तो बहुत है
कोरोना से जो लड़ना है
नहीं-नहीं, तुम्हारे लिए नहीं
अपनों के लिए।
भूख से मरो
पुलिस के डंडों से मरो
करोना से नहीं मरना है
एक दम से लॉक डाउन में रहना है
चाहे इसकी कीमत जो भी चुकाओ
मुझे डब्ल्यू एच ओ को आंकड़े जो देना है
देश की ईज्जत का जो सवाल है
देश की बदनामी हो सकती है
विश्व गुरु भी तो बनना है
चलो, कोई नहीं,
मैं अपने मन की बात सुनाता हूं
अव्यवस्था के लिए माफ़ी मांगता हूं
जो मर गया,
उसके लिए क्या कर सकता हूं
लेकिन आगे के लिए भी
गारंटी नहीं दे सकता हूं
हां, संवेदना के दो शब्द बोलूंगा
ये अलग बात है कि
उजड़े परिवार को
फिर से नहीं बसा सकता हूं
पर, माफी तो मांग सकता हूं
पांच साल बाद
तुम्हारी शरण में जो आना है।
                प्रियदर्शन कुमार

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