चौथा स्तंभ

चौथा स्तंभ (03/04/2017)
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ओ लोकतंत्र के चौथे स्तंभ
मत गिराओ अपने आचरण।

मत घूमों सत्ता के गलियारों में
मत गुणगान करो नेताओं का।

चंद लाभ प्राप्त करने की खातिर
मत गिरवी रखों अपने स्वाभिमान का।

तुम अंतिम प्रहरी हो इस लोकतंत्र का
तुम भी दागी बन जाओगे तो
कौन रक्षा करेगा इस लोकतंत्र का।

तुम्हारे पर भरोसा है इस लोक का
मत तोड़ों इनकी उम्मीदों को
तुम्हीं उम्मीद हो इस जन-जीवन का।

तुम्हीं मध्यस्थ हो सत्ता-जनता का
तुम्हें ही पहुँचाना है इनकी आवाजों को
लोकतंत्र के मंदिर तक
तुम्हीं आवाज़ हो किसानों-मजदूरों का।

तुम्हीं मुक्ति दिला सकते हो
जनता को सत्ता के अत्याचारों से।

तुम्हीं लोकतंत्र का दर्पन हो
तुम मत भूलों अपनी गरिमा को।
                     प्रियदर्शन कुमार

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