तुम
काव्य संख्या-226
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तुम
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बहुत बड़ी-बड़ी बातें
करते हो तुम।
जमीं की नहीं,
आसमां के लगते हो तुम।
तुम्हें समझ नहीं दौर-ए-दुनिया की,
नासमझ वाली हरकतें हमेशा करते हो तुम।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व,
अंजाम की परवाह नहीं करते हो तुम।
आज तक जितने भी निर्णय लिए तुमने,
कितने सफल हुए बताते नहीं हो तुम।
कितने ही जानें जाती हैं तुम्हारी एक गलती से,
उन बेकसूरों के बारे में नहीं सोचते हो तुम।
प्रियदर्शन कुमार
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