फिर एक नई सुबह

काव्य संख्या-177
08/05/2018
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एक नई सुबह
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एक नई सुबह /
एक नयी उमंग नये उम्मीदों के संग /
बढ़ चले हैं हम /
बिना अंजाम की परवाह किए /
हर दिन एक नई चुनौतियों के साथ /
हर दिन एक नया सबक /
एक जिद एक जुनून /
एक नई ऊर्जा के साथ
आँखों में एक नये सपने लिए /
उसके पीछे भागते /
उठते गिरते खुद को सम्भालते /
थकते रूकते /
और फिर आगे बढ़ चलते /
दुनिया की रेलमपेल में /
अपनी जगह तलाशने /
रोज निकल पड़ते हैं /
हां साहब /
ये जिंदगी है /
ये कभी ठहरती नहीं /
इसकी गति बहुत तीव्र है /
इसी के साथ चलने की कोशिश /
मंजिल तक पहुँचने की कोशिश /
लगा हूँ मैं /
लगा है सारा जहां /
ठहरना मौत है /
गति ही जीवन है /
हां एक नई सुबह /
एक नयी उमंग नये उम्मीदों के संग।
                         प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

हत्या कहूं या मृत्यु कहूं

हां साहब ! ये जिंदगी

ऐलै-ऐलै हो चुनाव क दिनमा

अलविदा 2019 !