हे ईश्वर !

हे ईश्वर (30/05/2018)
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हे इश्वर !
तुमने कैसा जहां बनाया था
यह कैसा बन गया है
आदमी, आदमी
से जलता है
इसने पशुता को भी
पीछे छोड़ दिया है
इनके आंखों में
प्यार की बजाय
खून दिखाई देता है
हर तरफ
मार-काट दंग-फंसाद
का बोलवाला हो गया है
मानव के अंदर
दानवता का प्रवेश हो गया है
मानव समष्टि को छोड़
व्यष्टि को अपना लिया है
घृणा-द्वेष-ईर्ष्या करना
इनके जीवन का हिस्सा
बन गया है
चारोँ ओर
नफ़रत-ही-नफ़रत फैला है
कहीं जाति के नामपर तो
कहीं धर्म के नामपर
ऐसा लगता है जैसे
अधर्म का राज हो गया हो
धर्म को किसी ने
कैद कर लिया हो।

टिप्पणियाँ

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