हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है
काव्य संख्या-229
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हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
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हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है
न्याय को सत्ता का रखैल बनते देखा है,
बाइज्जत बरी होते हत्यारों को भी देखा है,
हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
निर्भया के साथ न्याय होते देखा है,
दलित महिला के साथ भी न्याय होते देखा है,
हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
जिस्म को भी जाति में बंटते देखा है,
जिस्म को भी वर्ग में बंटते देखा है,
हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
मुजफ्फरपुर रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य देखा है,
मृत मां के कफ़न से बच्चे को भी खेलते देखा है,
हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
लॉक डाउन में गरीब-मजदूरों के पैरों के छाले को देखा है,
चार्टर प्लेन से हस्तियों को भी लाते देखा है,
हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
सामाजिक न्याय के नाम पर चुनाव जीतते देखा है,
जीतने के बाद किसानों, मजदूरों, शोषितों को खून के आंसू रूलाते भी देखा है,
हां, हां ! हमने सामाजिक न्याय होते देखा है।
हमने जनता को आपस में बंटते देखा है,
शिक्षित-अशिक्षित, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच, जाति-धर्म में भी बंटते देखा है,
हां, हां हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
सत्ता के गलियारों में चौथे स्तंभ को घूमते देखा है,
नेताओं के बिस्तर पर इन्हें भी लेटते देखा है,
हां, हां ! हमने सामाजिक न्याय होते देखा है।
सामाजिक न्याय को दम घूटते देखा है,
संविधान निर्माताओं के सपने को भी टूटते देखा है,
हां, हां ! हमने भी सामाजिक न्याय होते देखा है।
प्रियदर्शन कुमार
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