जनमानस की आवाज़
काव्य संसार - 232
=====================
जनमानस की आवाज़
=====================
हे देश के तथाकथित कर्णधार,
बेशर्म, बेहायी, दुराचारी, नरसंहारी सरकार,
अरे तुम कितनों को दबाओगे,
मुंह बंद करवाओगे,
सेवा करने से रोकोगे,
हम हारेंगे नहीं,
डरेंगे नहीं,
थकेंगे नहीं,
चुप रहेंगे नहीं,
तुम इडी लगाओ, सीबीआई लगाओ या लगाओ आईबी
जो करना है, जो लगाना है,
सब कुछ करो,
एक दिन खुद थक जाओगे,
मर जाओगे,
लेकिन, लेकिन
सेवा करने से किसी को नहीं रोक पाओगे,
यह दधिचि की, बुद्ध की, नानक की, गांधी-सुभाष की धरती है,
उन्होंने खुद के लिए नहीं,
दूसरों के लिए ज़िया है और बलिदान दिया है,
चंद लोगों को मारकर,
उनका मुंह बंद करवाकर,
तुम कैसे समझ गये,
कि भारत भूमि सेवा-भाव से शून्य है,
संवेदनाओं से शून्य है,
हां ! हां ! हर युग में,
तुम जैसे समाज को कलंकित करने वाले,
आतताइयों का इस धरती पे जन्म हुआ,
लेकिन जान लो उनका भी नाश हुआ,
कोई अमर नहीं हुआ,
फिर भी तुम्हारी आंखें नहीं खुलती बेशर्म, बेहाया
करो जो करना है तुम्हें,
तुम कभी रोक न पाओगे,
किसी को जन-मानस की सेवा करने से।
प्रियदर्शन कुमार
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें