मैं स्वप्न में ही जीना चाहता हूं (24/06/2017)
मैं स्वप्न में ही जीना चाहता हूँ
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अब स्वपन में ही
रहने की इच्छा है मुझे
वास्तविक दुनिया की
भयावह तस्वीर से
डर लगता है मुझे।
भौतिकता की चाह ने
खत्म कर दिया
सारे संबंधों को
बना दिया लोगों को
व्यक्तिवादी
इसलिए स्वपन में ही
रहने की इच्छा है मुझे।
कांप जाते हैं रुह मेरे
दुनिया की आवोहवा देखकर
मिलती नहीं शांति मुझे
हर वक्त संत्रास-कुंठा
में जीता हूँ मैं।
स्वप्न में ही मिलते हैं
मुझे मेरे कल्पना की दुनिया
जहाँ न घृणा-ईष्या-द्वैष
और न स्वार्थीपन है
जहां सिर्फ प्रेम-स्नेह-अपनापन
और सद्भावना है।
इसलिए स्वपन में ही
रहने की इच्छा है मुझे
मैं स्वप्न में ही
जीना चाहता हूँ।
प्रियदर्शन कुमार
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