लोकतंत्र का चीरहरण

लोकतंत्र का चीरहरण (30/06/2017)
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लोकतंत्र का चीर-हरन हो रहा ,
मुकदर्शक बन सब देख रहा !

मुख से विरोध का स्वर नहीं निकलता,
जैसे सबको सांप सूँघ गया !

अरे अब तो अपनी चुप्पी तोड़ो ,
लोकतंत्र की मंदिर से 
इन दलालों को बाहर निकालो !

संसद को इसने अखाड़ा बना दिया ,
इसने अपनी जिम्मेदारी से मुह मोड़ लिया !

जनता को क्या-क्या सपने दिखाया था,
उन सपनों को चकनाचूर कर दिया !

समावेशी विकास का नारा देकर 
खुद कोरपोरेट घरानों का रखैल बन गया!
                                प्रियदर्शन कुमार

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