सुनो कवि

सुनो कवि
भावनाएँ होती हैं
बहुत ही संवेदनशील
खाद्य-पानी मिलाकर
इन्हें उर्वर बनाया जाता है
ताकि जन भावनाओं के साथ खेला जाए
जनता की भावनाओं
का राजनीतिकरण कर
चुनाव में उपयोग किया जाए
कभी धर्म के नामपर
साम्प्रदायिकता फैलाई जाए
तो कभी जाति व्यवस्था के नामपर
समाज में घृणा फैलाई जाए
कभी लव जिहाद तो
कभी घर वापसी के नामपर
रोज नये-नये सगुफे छोड़ी जाए
जनमानस इन्हीं में उलझकर रह जाए
कोई इनसे सवाल नहीं पूछे
कि आपने जनकल्याण के लिए
क्या-क्या कदम उठाए?
उनकी राजनीति की दुकानें चलती रहे।
सुनो कवि
ये नेतागण होते हैं
बहुत बड़े दोगली किस्म की प्रजाति के
इनके लिए कोई मायने नहीं रखता
संवेदना सहानुभूति नैतिकता
लोक-धर्म लोक-मर्यादा
लोक-कल्याण समाज कल्याण
जैसे शब्दों के लिए
अपनी राजनीति चमकती रहे
जनमानस आपस में लड़-मरती रहे।
                          प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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