राष्ट्रवाद बनाम् अंधराष्ट्रवाद

                    राष्ट्रवाद बनाम अंधराष्ट्रवाद
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               बहुत बांटे घर-घर जाकर तूने पर्चे,
                    पर बांट न पाया प्यार को।
                        जा तुझे नकार दिया,
            रोक न पाया तू जनता के प्रतिकार को।।
अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रवाद की जो नयी परिभाषा दी है जो यह कहता है कि असली राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति और देशप्रेम वह है जो लोगों को अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, शुद्ध जल, बिजली, सड़क, रोज़गार मुहैया करवाए। इससे बड़ी राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रभक्ति और देशभक्ति कुछ भी नहीं है। बीजेपी का राष्ट्रवाद अंधराष्ट्रवाद है। अरविंद केजरीवाल का राष्ट्रवाद बीजेपी के राष्ट्रवाद की परिभाषा से बिल्कुल विपरीत  है। बीजेपी का राष्ट्रवाद जो पश्चिम के राष्ट्रवाद की अवधारणा के कहीं अधिक करीब है, जो यह कहता कि एक राष्ट्र वही हो सकता है जिसके अंतर्गत एक जाति, एक धर्म और एक भाषा बोलने वाले के लोग आते हों। राष्ट्रवाद की यह अवधारणा उस राष्ट्र की जनता में इगो को जन्म देता है जिसका परिणाम होता है उनके दिल में घृणा, द्वैश और नफ़रत की भावना का जन्म लेना। राष्ट्रवाद की यह अवधारणा हमारे देश की संस्कृति के खिलाफ भी जो यह कहता है कि "वसुधैव कुटुंबकम्"। मैथिली शरण गुप्त ने भी कहा है कि-
        क्या  साम्प्रदायिक  एक्य  से  मिट  सकता  अहो,
       बनती नहीं क्या एक माला विविध सुमनों से कहो।
          मुझे लगता है बिहार को भी अरविंद केजरीवाल से सीख लेने की जरूरत है। जो कि बिहार के हित में भी है और देश हित में भी। हम सभी इस बात को भली-भांति जानते हैं कि कोई भी देश तभी मजबूत हो सकता है जबकि वहां के रहने वाले प्रत्येक नागरिक मजबूत होंगे अर्थात् वह शिक्षित हो, स्वस्थ्य हो और मानसिक रूप से मजबूत हो। हमारा बिहार अब भी जाति के जद से बाहर नहीं निकल सका है, जिसका फायदा राजनीतिक दल उठाते हैं। हमें लॉलीपॉप दिखाकर बहला-फुसलाकर हमारा वोट लेते हैं और अपनी जेबें भरते हैं। हमें अपनी संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकल कर बिहार के विकास के बारे में सोचना होगा। हमें जातिवादी परंपराओं को तोड़ना होगा। हमें खुद को उनके चंगुल से मुक्त करना होगा। हमें ऐसे विकल्पों की तलाश करनी होगी जो जाति-धर्म के बजाय विकास की बात करे। अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, शुद्ध पेयजल, बिजली, रोजगार जनता को उपलब्ध करवाने की बात करे न की बिहार को जाति-धर्म, मज़हब, भारत-पाकिस्तान, हिंदू-मुस्लिम में उलझाने की बात करे। आज जिस प्रकार दिल्ली की जनता ने बीजेपी को नकार ठीक उसी प्रकार बिहार की जनता को भी बीजेपी को नकार कर अपनी बौद्धिकता का परिचय देना चाहिए ।
प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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