गुड़िया

काव्य संख्या-223
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गुड़िया
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है जिम्मेदारियों का अहसास
तभी तो आगे बढ़ रहा हिन्दुस्तान।
पेट की आग और देश की परवाह
दोनों को साथ लेकर बढ़ रही है गुड़िया।।

न दुनिया की परवाह कि क्या कहेंगे वो
नि:संकोच दायित्वों को निभा रही है गुड़िया।
देख रही है कब तक अंजान बनीं रहेंगी दुनिया
मौन होकर बहुत कुछ बयां कर रही गुड़िया है।।

सवाल हैं उनके बहुत नीति-निर्माताओं से लेकिन
एक ज़िम्मेदार लोगों की तलाश कर रही है गुड़िया।
जिम्मेदार लोगों की बहुत कमी है आज़ यहां
इसलिए जिम्मेदारी उठाने को पढ़ रही है गुड़िया।।

बचपन छिन गया उसका उसे उसकी परवाह नहीं
आगे से ऐसा नहीं हो इसलिए पढ़ रही है गुड़िया।
खिलौनों को छोड़ हालातों से किया सामना उसने
उठते गिरते खुद को संभालते आगे बढ़ रही है गुड़िया।।
                                                  प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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