खामोशियां भी कुछ कह रहीं हैं

काव्य संख्या-202
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खामोशियां भी कुछ कह रहीं हैं
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खामोशियां भी कुछ कह रहीं हैं
उसे समझने की कोशिश करो।
सबकुछ लफ्जों में बयां नहीं होता
ईशारों में समझने की कोशिश करो।
देश की आवो-हवा को महसूस करो
किस तरफ बह रही है हवा।
बहुत गर्म है देश का माहौल
कुछ भी करने से पहले सोच लो।
बच के तुम यहां रहना
कभी भी सत्ते का शिकार हो जाओगे।
धीरे से तुम सांसे लेना
कहीं सुन न ले कोई।
घूम रहे हैं सरकार के चमचे
उन चमचों से तुम बचकर रहना।
हर तरफ यहां पर खड़ी हैं
जाति-धर्म-मजहब की दीवारें।
रखी जा रही हैं तुम पर भी नजरें
कितना भी नजरें चुराने की कोशिशें करो।
खामोशियां भी कुछ कह रहीं हैं
उसे समझने की कोशिश करो।
                   प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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