बेटा-बेटी

काव्य संख्या-106
=====================
बेटा-बेटी
=====================
समय की परिवर्तनशीलता को देखो
कभी पराई समझी जाती थी बेटी
घर की मेहमान होती थी बेटी
घर से बिदा होती थी बेटी
बेटी में जन्म लेना
अपशकुन समझी जाती थी बेटी
माँ-बाप के आँखों का तारा था बेटा
कुल का दीपक था बेटा
सुख-दुख का भागी था बेटा
वंश को आगे बढ़ाने वाला था बेटा
माँ-बाप के मोक्ष का माध्यम था बेटा
दिन गुजरे
युग बदला
रिश्तों की अहमियत बदली
परिवार का दर्शन बदला
अब मेहमान होता है बेटा
घर का पराया होता है बेटा
शादी के बाद
घर से बिदा होता है बेटा
माँ-बाप के आँखों का आँसू होता है बेटा
दुख का कारण होता है बेटा
अपनी होती है बेटी
दुख-सुख की भागी होती है बेटा
माँ-बाप के बुढ़ापे की लाठी होती है बेटी।
                        प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

हत्या कहूं या मृत्यु कहूं

हां साहब ! ये जिंदगी

ऐलै-ऐलै हो चुनाव क दिनमा

अलविदा 2019 !