टूटते पत्ते

टूटते पत्ते
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वृक्ष से जब पत्ते टूटकर अलग होते हैं
पत्ते का अस्तित्व खत्म हो जाता है।
जबतक पत्ते वृक्ष से जुड़े रहते हैं,
वृक्ष बूढ़ा होकर भी,
अपनी क्षमता तक,
पत्तों का पालन-पोषण करता है।
मगरूर पत्ता,
अपने यौवन से चूर होकर पेड़ से अलग हो जाता है।
वह यह नहीं सोच पाता है
कि उस पेड़ का क्या होगा,
जिसने उसका पालन-पोषण किया है
उसके दर्द का उसे तनिक भी अहसास नहीं
पत्ते को अलग होते देख
वृक्ष मुरझाने लगता है।
पत्ते को लगता है,
उसके लिए अब वृक्ष की कोई अहमियत नहीं है।
वह समझने लगता है
कि वृक्ष की सुंदरता उसके कारण ही है
लेकिन उसे यह नहीं मालूम
कि उसके चहरे पर मुस्कान का कारण वह वृक्ष है
वह जो भी है,
जैसा भी है,
उस वृक्ष के कारण है।
वह जब भी पहचाना जाएगा
अपने वृक्ष से ही।
लेकिन मगरूर पत्ता
अपने अस्तित्व के लिए भटकता रहता है,
दर-बदर की ठोकरें खाते रहता है
और अंत में टूटकर बिखर जाता है
क्योंकि अपने सृजक की आत्मा को पीडि़त कर
सृजित कैसे खुश रह सकता है।
                  प्रियदर्शन कुमार

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