अहसास

अहसास
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मैं हँसता हूँ
जब सबके बीच होता हूँ।
मैं रोता हूँ
जब अकेला होता हूँ।
सबका साथ है
फिर भी लगता नहीं कोई पास है।
भीड़ में हूँ
फिर भी अकेला हूँ।
चेहरे पर हँसी है
फिर भी पीड़ा में हूँ
मैं वो झरना हूँ
जो चट्टानों से चोट खाकर भी
हमेशा मुस्कुराता रहता हूँ।
मैं उस सागर की तरह हूँ जिसकी लहरें
चट्टानों से बार-बार चोट खाती हैं
लेकिन हार नहीं मानती।
खुशियाँ नहीं सबके नसीब में
मैं दुख के सहारे ही जीता हूँ।
मैं हूँ
बस, यह एक अहसास है
अहसास के अलावा
और कुछ नहीं।
प्रियदर्शन कुमार

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