21वीं सदी
काव्य संख्या-201
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21वीं सदी
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21वीं सदी में भारत की तस्वीर कैसी बन गई
मूल्य-नैतिकता आचार-विचार सब लुप्त हो गई।
कहां से हम चले थे और कहां पहुंच गए
हम अपनी परंपराओं को कैसे भूल गए।
लोकलाज-शर्मों-हया सबको भूलाकर
आज बहन-बेटियां कैसी बेपर्द हो गई ।
खुश हैं माँ-बाप यहां कि हम मॉडर्न हो गए
अपनी ही बेटियों के अर्द्धनग्नता पर गर्व कर रहे।
मर रहा किसान यहां लूट रही बेटियों की आबरू
और कह रहे हैं हम भारत नयी इबारत लिख रहा।
रिश्ते-नाते सब टूटकर ऐसे बिखर गए
एक-दूसरे से आँखें मिलाने से भी बच रहें।
समाज में आज ये कैसी लहर चल पड़ी
अपने ही संस्कारों को हमने भूला दिया।
हमने अतीत को भूलकर वर्तमान में खो गए
धर्म-जाति ऊंच-नीच के दलदल में फंस गए।
स्वतंत्रता समानता बंधुत्व की कसमें खाई थी
उन सबको भूलाकर स्वार्थ सिद्धि में लग गये।
हमने कभी दुनिया को लोहा मनवाया था
आज हम उसी दुनिया के पिछलग्गू बन गए।
21वीं सदी में भारत की तस्वीर कैसी बन गई
मूल्य-नैतिकता आचार-विचार सब लुप्त हो गई।
प्रियदर्शन कुमार
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