मैं
मैं चाहता हूँ
कुछ ऐसा कर जाऊं
कि दुनिया अपने
दिल में पनाह दे मुझे
मैं चाहता हूँ
कुछ ऐसा लिख जाऊं
कि वह तासीर बन जाएँ
मैं चाहता हूँ
कि हर लाईब्रेरी का
एक हिस्सा मैं बन जाऊं
मैं चाहता हूँ
कि हर एक की
मुस्कान बन जाऊं
मैं चाहता हूँ
कि गुमनामी की दुनिया
से निकलकर एक
अमिट छाप छोड़ जाऊं
चाहता हूँ कुछ ऐसी तान लिख दूं
कि हर लवों पर गुगगुनाया जाऊं
चाहत नहीं मुझे भौतिकता की
चाहत तो है बस अपने नाम की
और नहीं कुछ भी
कामना है मेरी
मैं भी मर जाऊं तो भी
कोई फर्क पड़ता नहीं
लेकिन बस मेरी आकांक्षा
है कि हर धड़कन की
मैं आवाज बन जाऊं
मैं अक्सर सोचता हूँ
कि कुछ ऐसा कर जाऊं
कि दुनिया याद रखे मुझे।
प्रियदर्शन कुमार
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