ख्वाहिशें

काव्य संख्या-198
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ख्वाहिशें
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ख्वाहिशें मेरी भी थीं,
उसके पीछे भागा मैंने भी था,
लेकिन पूरी हो न पायी,
शायद समय को मंजूर न था,
शायद इसीलिए मैं
जहां का तहां ही रह गया,
लेकिन, शिकायतें नहीं हैं,
मुझे मेरी जिंदगी से,
बस, यहीं सोच कर,
जो आ पड़ा मेरे सामने,
अपना मुकद्दर समझ,
उसे अपना लिया मैंने,
कट गई हैं आधी जिंदगी,
कट जाएंगी आधी जिंदगी,
बस, एक ही चीज सीखें हैं,
मैंने अपनी जिंदगी से,
परिस्थितियां कैसी भी आए,
हमेशा मुस्कुराते रहना,
जान चुका हूँ, जिंदगी से मैंने,
न सुख स्थिर है,
और न दुख शाश्वत है,
फिर इससे घबराना कैसा,
जो पर जाए सामने,
उसे हँसते हुए झेल जाना है
हां, जिंदगी यही है,
जिंदगी का मतलब यही है
समय रहते समझ जाएं,
तो अच्छा है
गर नहीं समझ पाए,
तो, जिंदगी समझा ही देगी,
फिर अपने वश का कुछ भी नहीं,
हाथ मलने के अलावा।
प्रियदर्शन कुमार

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