दीवारों के भी कान होते हैं

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यहां दीवारों के भी कान होते हैं
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जरा-सा धीरे बोलो /
कहीं कोई सन न ले/
यहां दीवारों के भी कान होते हैं /
हर तरफ साजिशें चल रही हैं /
चारों ओर सन्नाटा पसरा है /
शायद किसी तूफान के आने का अंदेशा है /
सड़क सुनसान है /
बीच-बीच में /
ठक-ठक लाठी की आवाज सुनाई पड़ जाती है /
शायद वो हमारी आवाज को बंद करने के लिए है /
कभी-कभी पों-पा पों-पा पों-पों पों-पा
की भी आवाज़ सुनाई पड़ जाती है /
शायद हिन्दू धर्म खतरे में है /
उसी को बचाने का संकेत दे रहा हो /
पत्रकारों ने भी सुरक्षित स्थान ढ़ूँढ़ लिया है /
उन्होंने अपने कलम को गिरवी रख दिया है /
हुयीं-हुयीं गाड़ियों की आवाज़ आ रही है /
प्रशासन भी चौकन्ना है /
कहीं कोई तंत्र के खिलाफ बगावत न कर दे /
जनता कहीं हिसाब न ले लें /
यहां सिर्फ जनता को वोट देने का अधिकार है /
हिसाब मांगने का अधिकार नहीं /
क्योंकि यहां लोकतंत्र है /
हिसाब-तंत्र नहीं /
किसान मरता है तो मरने दो /
बेरोजगारी बढ़ती है तो बढ़ने दो/
किसी की इज्ज़त लूटती है तो लूटने दो /
जनता का पैसा लेकर कोई भाग गया तो भागने दो /
इतना बड़ा देश है /
ये सब छोटी-छोटी चीजें हैं /
यहां जो कुछ भी हो रहा है /
उसे सिर्फ टुकुर-टुकुर देखना है /
उसके खिलाफ बोलना देशद्रोह है /
और देशद्रोह की सजा फांसी है /
हां, मैं तुम्हें फिर से कहता हूँ /
जरा-सा धीरे बोलो /
कहीं कोई सन न ले/
यहां दीवारों के भी कान होते हैं।
                    प्रियदर्शन कुमार

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