दीप जलती नहीं मन की

दीप जलती है यहां
मगर जलती नहीं मन की
काश कि ऐसा हो पाता
तो अंधियारा नहीं होता
हर तरफ है यहां पर
झूठ - फरेब का बोलबाला
हर एक को देखते हैं लोग यहां
घृणा भरी नजरों से
अगर खत्म करना ही है तो
खत्म कर घृणा अपने मन से
दीप जलती है यहां
मगर जलती नहीं मन की।
            प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

हत्या कहूं या मृत्यु कहूं

हां साहब ! ये जिंदगी

ऐलै-ऐलै हो चुनाव क दिनमा

अलविदा 2019 !