माँ-बाप
माँ-बाप के अहमियत का पता बच्चों को
माँ-बाप के गुजर जाने के बाद चलता है।
माँ-बाप जबतक आँखों के सामने होते हैं
माँ-बाप की तबतक अहमियत नहीं होती।
माँ-बाप की भूमिका में आते हैं जब बच्चे
माँ-बाप के हर एक शब्द याद आते हैं उन्हें।
माँ-बाप को काश, उनके रहते समझ पाते वे
माँ-बाप को दिए गए पीड़ा से बच पाते वे।
माँ-बाप की बात को अगर जहन में रख लेते
माँ-बाप की कमी कभी खलती नहीं उन्हें।
माँ-बाप कभी भी मरते नहीं हैं
माँ-बाप हमसाया बनके रहते बच्चों के साथ।
माँ-बाप अपनी सारी खुशियाँ लूटा देते बच्चों पे
माँ-बाप खींच लेते हैं सारे गम अपने बच्चों के।
माँ-बाप के लिए सबसे बड़े दौलत होते हैं बच्चे
माँ-बाप को फिर भी क्यूँ रुलाते हैं बच्चे
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