मैं लिखता हूँ तब, जब अंदर से रोता हूँ तब

मैं लिखता हूँ तब
जब अंदर से रोता हूँ तब
मैं अंदर से रोता हूँ तब
जब पीड़ा में होता हूँ तब
मैं पीड़ा में होता हूँ तब
जब बिखरता हूँ तब
मैं बिखरता हूँ तब
जब अंदर से टूटता हूँ तब
मैं अंदर से टूटता हूँ तब
जब अपनों को दुखी देखता हूँ तब
मैं अपनों को दुखी देखता हूँ तब
जब खुद को अपनों के दुख का कारण मानता हूँ तब
मैं खुद को अपनों के दुख का कारण मानता हूँ तब
जब मेरे कारण अपनों के दिल पर ठेस लगती है तब
मेरे कारण अपनों के दिल पर ठेस लगती है जब
मैं पश्चाताप की अग्नि में जलता हूँ तब
हां, मैं लिखता हूँ तब
जब अंदर से रोता हूँ तब।
प्रियदर्शन कुमार

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