वो माँ है

रिस-रिसकर खत्म
हो जाती है उनकी जिंदगी
न जाने किस बात की सजा
मिलती है उन्हें
पूरी जिंदगी
खत्म हो जाती है उनकी जिंदगी
उन्हें सजने-संवारने में
और सुंदर बनाने में
अपनी पूरी खुशियाँ लूटा देते हैं वो
उनकी एक खुशी के लिए
मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा
हर जगह मत्था टेकते हैं वो
हर जगह मन्नतें मांगते हैं वो
उनके खुशी के लिए
उनकी सुख-समृद्धि के लिए
खींच लेते हैं वो
उनके सारे दुखों को
अपने ह्रदय में
सींच देते हैं वो
उनके ह्रदय को खुशियों से
खुद भूखी रह जाती हैं
उन्हें खिलाकर
हमेशा राह तकती
उनके आने की
उनके माथे को चूमने की
उनसे दो बातें करने की
बदले में मिलती है उन्हें
" सिसकियाँ "
उन्हें आँखों में
" आँसू "
सुनने पड़ते है उन्हें
" ताने "
खाने के पड़ते हैं उन्हें
" लाले "
खोजते हैं वो रहने का
" आसरा "
किया जाता है उनके साथ व्यवहार
" अछूतों "
के जैसा
हां ! वो कोई और नहीं
वो माँ है वो माँ है।
प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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