विकास का कैसा नारा है

विकास का कैसा नारा है (25/03/2017)
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यह विकास का कैसा नारा है
जहां लाखों लोग भूखे सोते हैं
बच्चे एक निबाले को तरसते हैं
खुले आसमान के नीचे सोते हैं
किसान आत्महत्या करते हैं
मजदूरों के रक्त चूसे जाते हैं
बेरोजगारी बढ़ती जाती है
अमीर-गरीब के बीच की खाई
निरंतर बढ़ती जाती है
चंद लोगों के पास सारी सम्पति
संकेन्द्रित होती जाती है
समाज में विसंगति फैलती जाती है
सब जगह भ्रष्टाचार का बोलबाला है
मंत्री से लेकर संत्री तक
जुमलेबाज़ी करते हैं
जहां विकास के नाम पर
आकड़ों के खेल चलते हैं
वास्तविकता से आंख चुराया जाता है
विकास की बड़ी-बड़ी बातें किया जाता है।
                                   प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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