जा कोरोना जा

काव्य संख्या-225
===========
जा कोरोना जा
===========
जा कोरोना जा
निर्धन के आंखों में
तू मत आंसू ला
जा कोरोना जा।
गरीबी रूला रही है
अपनों की जुदाई रूला रही है
अब तू भी मत रूला
जा कोरोना जा।
सब कुछ छिन गया है
अब केवल सांस बचा है
उसे भी मत छिन तू
जा कोरोना जा।
भूख से बच्चे बिलख रहे हैं
दो जून की रोटी खाने को तरश रहे हैं
कुछ खाने को पास नहीं है
चूल्हे पर मकड़ी का जाला है
छिन गया सुख चैन हमारा है
अब तू हमें और न तड़पा
जा कोरोना जा।
रोजगार छिन गया
जो जीने सहारा था
दो पैसे बचा रखे थे
सारा खत्म हो गया
तेरे एक आने से
खाने के लाले पड़ गए
अब और न ले तू
मेरी अग्नि परीक्षा
जा कोरोना जा।
कभी सुरज की तपिश
कभी बाढ़ का प्रकोप
कभी भूकंप का सामना
अब तुम्हारा प्रकोप
सहन नहीं होता
जा कोरोना जा।
उपर से फरमान आया है
घर से बाहर नहीं निकलना है
अब तेरे ही हाथों में जीवन हमारा है
अब तू ही हमें बचा सकता है
जा कोरोना जा।
प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

हत्या कहूं या मृत्यु कहूं

हां साहब ! ये जिंदगी

ऐलै-ऐलै हो चुनाव क दिनमा

अलविदा 2019 !