पीड़ित जनता की आवाज़

पीड़ित जनता की आवाज़(29/03/2018)
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हे राजन् !
तुम्हें मैनें अपना राजा चुना,
तुमसे मुझे बड़ी अपेक्षाएं थी।
मैनें बड़े-बड़े सपने देखें थे,
कि तुम उन सपनों को पूरा करोगे।
तुम मेरे दुखों को हरोगे,
तुम मेरे आंखों के आंसूओं को पोछोगे।
मेरे होठों पर फिर से हंसी लाओगे।
भूखें को भोजन, प्यासे को पानी,
नंगे के तन पर कपड़ा,
बेघर को घर दोगे।
समाज में शान्ति और
सौहार्द्र की स्थापना करोगे।
लोकतंत्र से उठ चुके मेरे विश्वास
को फिर से बहाल करोगे।
लेकिन, ये क्या किया तुमनें?
मेरी की भावनाओं के साथ खेला,
मेरे सपनों का चकनाचूर कर दिया,
मुझे सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया।
मैंने हक माँगा तो तुमने गोली चलवाया
रोजगार माँगा तो
साम्प्रदायिकता की आग में झोंक दिया
मैं पूछता हूँ तुमसे,
आखिर मेरा अपराध क्या था,
किसकी सजा मुझे मिली है?
बस, यहीँ न कि
तुमसे अपेक्षाएं रखी थी मैनें,
कुछ सपनें देखें थे मैनें,
उसकी इतनी बड़ी सजा,
हे राजन् !
धिक्कार है धिक्कार है तुम पर।
                   प्रियदर्शन कुमार

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