जिंदगी इसी का नाम है

जिंदगी इसी का नाम है  (30/03/2017)
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मैं हैरान हूँ यह सोचकर
कि मैं कहां जा रहा हूँ
नियति मुझे ले जा रही है
या मैं नियति के कारण जा रहा हूँ
इसी के मंथन में रहता हूँ
पहुंच नहीं पाता हूँ
मैं निष्कर्ष तक
रोज नये-नये सवाल
उभर कर आते हैं मेरे सामने
मैं इन्हीं गुत्थियों को
सुलझाने में लगा रहता हूँ
यह गुत्थी है कि सुलझने की बजाय
और उलझती ही चली जाती है
गांठ-पर-गांठ पड़ता ही जा रहा है
सोचता हूँ कुछ, कर जाता हूँ कुछ
और हो जाता है कुछ
जिंदगी को समझना बहुत-ही जटिल है
जिंदगी को अपनी मर्जी से जीना
अपनी शर्तों पर जीना बहुत-ही मुश्किल है
हर पग पर समझौता करना पड़ता है।
सोचता हूँ कि
क्या जिंदगी इसी का नाम तो नहीं।
                        प्रियदर्शन कुमार

टिप्पणियाँ

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