विलाप

विलाप
(11/07/2017
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विलाप
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हे ईश्वर ,
कब तक नफ़रत की आग में
जलती रहेगी यह दुनिया
कब तक झुलसते रहेंगे लोग
कब तक बेगुनाहों के खून से
लाल होती रहेगी यह धरती
कब तक छलनी होती
रहेगी धरती का सीना
कब तक खत्म होगा यह
समाज में फैला हुआ
अलगावाद-कट्टरपंथवाद
सम्प्रदायवाद-जातिवाद
कब तक टूटेंगी इनकी कड़ियाँ
कब तक आजाद होंगे लोग
इन जकड़नों से
कब तक लोग हैवानियत का
रास्ता छोड़ ,
इंसानियत को गले लगाएंगे
या फिर, यह इनकी नियति
ही बनकर रह गई है
हे ईश्वर ! 
अब तुम्हें ही निकालना है
दुनिया को इस मकड़जाल से
एक बार फिर, तुम्हारा अवतार
लेने का समय आ गया है
अब तुम्हें ही आजाद करना होगा
दुनिया को इस दुष्चक्र से
नहीं, तो एक दिन सबको
लीन जाएगी यह दोगली राजनीति।
                        प्रियदर्शन कुमार

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