आईना है वो
काव्य संख्या-189
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आईना है वो
(13/07/2018)
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अक्सर मुझे चिढ़ाता है वो
मेरी चापलूसी नहीं करता है वो
सच को सच कहता है वो
लोग झुक जाते हैं मेरे आगे
मैं झुक जाता हूँ उसके आगे
आँख से आँख मिलाकर
मुझसे बातें करता है वो
हां, कोई और नहीं
आईना है वो।
मुझे मेरी नजरों में गिराता भी है वो
और उठाता भी है वो
मेरी नींदो को चुराता है वो
चैन की नींद सुलाता भी है वो
मुझे बेचैन भी करता है वो
और शांति भी देता है वो
मुझे रूलाता भी है वो
और हँसाता भी है वो
हां, कोई और नहीं
आईना है वो।
मेरे दर्प को तोड़ता भी है वो
मुझे रास्ता भी दिखाता है वो
मुझे ठोकरें भी देता है वो
मुझे सम्भालता भी है वो
मुझे प्रेरणा भी देता है वो
हां, कोई और नहीं
वह आईना है वो
प्रियदर्शन कुमार
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