मैं असभ्य हूं

मैं असभ्य हूं
(16/07/2016)
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मैं असभ्य हूँ
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पुराने जमाने के लोग 
बहुत भावुक हुआ करते थे,
थोड़ी-सी भी नैतिकता पर 
आंच आने से इमोशनल हो जाया करते थे।
पर अब जमाना बदल गया,
समाज तो वहीं है पर,
समाज में रहने वाले लोग बदल गये।
अब नैतिकता शब्द बेगाना हो गया।
परिवार अब पति-पत्नी-बच्चे तक सीमित हो गया।
अपने सुख से सुखी खुशी के मतलब हो गये।
सम्वेदना और सहानुभूति शब्द से 
हम अपरिचित गये।
इसे ही हम अगर सभ्य होना कहते हैं,
तो मैं असभ्य कहलाना अधिक पसंद करूंगा।
                                      प्रियदर्शन कुमार

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