मैं जानवर हूं

मैं जानवर हूं
(16/07/2017)
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हे ईश्वर !
अब तो मानव कहलाने
में भी शर्म आती है मानव को।
मानवता को ही
शर्मसार कर दिया है मानव ने।
अब तो जानवर भी तंज
कसते हैं मानव पर,
घृणा की नजरों से देखते हैं
मानव को।
मानव को देख!
जानवर भी आँखें तरेरते हैं,
अपने-आपको गौरवान्वित
महसूस करते हैं।
खुद को मानव की बजाय
जानवर ही कहलाना पसंद करते है।
वह कहता है कि
अच्छा है, मुझे ईश्वर ने बुद्धि नहीं दिया,
काश ! ऐसा हो जाता, तो
मैं भी, अपनी ही प्रजाति को 
काटने को दौड़ता।
अगर मेरे अंदर ज्ञान होता, तो
समष्टि के बजाय व्यष्टि हो जाता,
खुद अपने बारे में ही सोचता,
खुद की स्वार्थ-सिद्धी में लगा रहता।
मेरे भी आँखों का पानी सुख जाता,
मेरे अंदर भी ईर्ष्या-द्वैष का भाव
जन्म ले लेता,
मैं भी हमेशा दम्भ में चूर रहता।
अच्छा है ! मैं जानवर हूँ।
          ‌‌प्रियदर्शन कुमार

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