बारिश की बूंदें
बारिश की बूंदें
(03/07/2017)
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बारिश की बूंदें
जब पड़ती है धरा पर
धरा मानो जैसे
फिर से यौवनावस्था में
प्रवेश कर गई हो
चारों ओर हरियाली
छा जाती है
ऐसा लगता जैसे
बादल से दूर होने
के कारण
विरह की ताप में
जल रही धरा पर
जैसे ही बारिश की बूंदे
पड़ती है वैसे ही
उसकी आत्मा को तृप्ति मिल गई हो
धरती की इस वेदना को
बादल समझता है और
धरती भी जानती है
झमाझम बारिश
कर उसकी तपिश
को बादल ही
शांत कर सकता है
बादल और धरती के मिलन से
मानो ऐसा लगता है जैसे
पेड़-पौधे पर्वत झरना
उफनती नदियाँ
खुशी से झूम रहे हों
नाचते हुए मोर
कलरव करती पक्षियां
दोनों के मिलन से प्रफुल्लित हो
जैसे स्वागत गान गा रहे हों।
प्रियदर्शन कुमार
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