दर्द-ए-बयां

दर्द-ए-बयां
(14/07/2017)
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मैं कैसे करूँ
अपने दर्द-ए-बयां ,
जो आज तक नहीं की।
मेरे पास शब्द नहीं हैं ,
दर्द-ए-बयां करने को।
हां ! एक तरीका और है,
दर्द-ए-बयां करने का,
कि मैं मौन रहूँ ;
और मुख से कुछ न बोलूँ ,/
बस, उसे सहता रहूँ।
क्योंकि,
मौन भी अभिव्यंजना का
एक तरीका है।
चुपचाप दूसरों के दर्द-ए-दिल का 
हाल सुनता रहूँ ,
और खुद मौन रहूँ।
चाहता हूँ ,
कि दर्द को ही अपना
हमसफ़र बना लूँ ,
और दर्द में ही जीना सिख लूँ ,/
ताकि दर्द कुछ कम हो जाए।
सुना है, दर्द से दर्द टकराने पर ,
दर्द कम हो जाता है।
हां ! यही अच्छा होगा ,
कि दर्द में ही ठहर जाऊँ।
           प्रियदर्शन कुमार

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