ये पल भी गुज़र जाएगा

काव्य संख्या- 218
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थोड़ा इंतजार करो यह पल भी गुज़र जाएगा,
दर्द-ए-दास्तां का यह दिन भी गुज़र जाएगा,
हमारा इतिहास है हमने कभी हार नहीं मानी ,
हमारा मुल्क एक बार फिर लड़कर जीत जाएगा।

हमने गोरों से भी लड़ा था अब कालों से लड़ेंगें,
हम बाहरी से नहीं अब अंदर के दुश्मनों से लड़ेंगें,
हमने कुछ पल के लिए तख्त-ए-ताज क्या सौप दिया,
वह उसे अपना समझने की गलती कर बैठा ।

हमने अपने बागों को अपने ख़ून से सींचा है
रंग-बिरंगे कली-कुसुम इसकी गवाही देता है
इनमें नहीं गुमान ये यूं ही मुस्कुराते रहते हैं,
हम इनकी मुस्कुराहटों को कैसे छीन जाने दें।

यह हमारी साझी विरासत का हिस्सा है,
हमने साथ मिलकर इसे पाला-पोसा है,
इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं ध्यान रखना,
हवा के झोंके को ये यूं ही झेल जाती हैं।

कुछ पत्तें टहनियों से अलग क्या हो गए,
तुम पेड़ के सूखने की बात करने लग गए,
अभी नासमझ हो मौसम की समझ नहीं तुममें,
पतझड़ के मौसम में यूं ही पत्ते झड़ जाते हैं।
                                      प्रियदर्शन कुमार

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