वो आईना

काव्य संख्या-153
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वो आइना
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वो आइना,
वो बेजान आइना,
वो बेजुबान आइना
वो निर्जीव आइना,
जो हमारे सामने आते ही
सजीव हो उठता है,
जो हमारे हर रूप
का हमें दर्शन कराता है,
हम रोओगे वो भी रोएगा,
हम हंसोगे वो भी हंसेगा,
हम गुस्सा करोगे वो भी करेगा,
हमारे चेहरे के हर एक्सप्रेशन से
हमें साक्षात्कार करवाता है।
वो आइना ही है, जो कभी
झूठ नहीं बोलता है,
हम आइने को तोड़ भी दे फिर भी
टूटे हुए आइने का हर टूकड़ा हमारी
सच्चाई को हमसे बयाँ करता रहेगा।
वह आइना न केवल आइना है
वरन् जीवन की सच्चाई है
हमारे मन का,
हमारे ह्र्दय का प्रतिबिंब है,
हमारे अंदर उठ रहे
हर तरंगों का जवाब है,
जो हमें खुद को पढ़ने
और खुद को समझने में
मदद प्रदान करता है।
आइना हमें सच्चाइयों के
रास्ते पर चलना सिखाता है,
आइना हमें खुद से
आँखें मिलाना सिखाता है।
आइना हमारे जीवन का प्रतिबिम्ब है,
जो हमें, हमारे हर व्यवहार से
परिचय करवाता है,
जो हमारे होने का
हमें अहसास कराता है,
हमें इंसान बनना सिखाता है।
वो आइना,
बेजुबान आइना'
जो न कुछ कहते हुए भी
बहुत कुछ कह जाता है।
        प्रियदर्शन कुमार

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