किसान

कब तक बेआबरू
होते रहेंगे किसान?
कब तक रूकेगा
यह आत्महत्या का सिलसिला?
कब तक गोलियों का शिकार
होते रहेंगें किसान?
कब तक उन्हें
जीते जी कब्र में बैठना पड़ेगा?
कब तक जिंदगी और मौत
से जूझते रहेंगे किसान?
क्यों जिस्म(किसान) से जान(जमीन)
अलग करने की कोशिश
की जा रही है?
कब तक उनके साथ
इस प्रकार का घिनौना
खेल खेला जाएगा?
कब तक उन्हें
अपने धैर्य की परीक्षा देनी पड़ेगी?
कोई तो चरम बिंदु होंगे
जहां जाकर यह सिलसिला थमेगा?
कोई तो रास्ता होगा
या फिर क्रांति ही उनकी
उनकी समस्याओं का एकमात्र हल है?
कैसे सरकार सरकार इतनी
संवेदनहीन हो सकती है?
क्यों किसानों को नक्सलवादियों
का दामन थामने के लिए
मजबूर कर रही है?
क्यों सरकार उन्हें हथियार
उठाने को विवश कर रही है?
               प्रियदर्शन कुमार

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